बचपन की वापसी
बचपन की वापसी
सलमान आज कलेक्टर बन कर फिर उसी जगह आ गया था,जहा कभी उसका बचपन बीता था।बचपन की यादों में आज वो खो रहा था,वही गिल्ली डंडे का खेल।पेड़ से तोड़कर गिल्ली डंडे बनाना और दोस्तो संग धमाल मचाना।सलमान और गुड्डू की दोस्ती पक्की थी और खेल भी पक्की खेल की भावना से होता था।और जीत का जश्न हो जाता था,खेतो से कुछ अमरूद तोड़कर ,एक दूसरे को खिलाकर।कितना अनोखा प्रकृति प्रेम था।माटी से जुड़े रहने का एक अलग आनंद।
आज सलमान की आंखे फिर गुड्डू को खोज रही थी,पुस्तैनी काम था,छोड़ा तो न होगा।बस फिर क्या ,खोज कर बुलावा भेज दिया।
गुड्डू- "क्या मालिक कुछ गलती हो गयी?"
सलमान-"पहचान रहे हो हमे?"
गुड्डू- "मालिक,आप कलेक्टर हो।"
सलमान- "गुल्ली डंडा खेलते हो?"
गुड्डू-"क्या मालिक,ये कोई उम्र है खेलने की,पूरा समय काम धंधे में चल जाता है।"
सलमान-"बचपन मे खेले थे,कोई दोस्त थे,कहाँ है वो?"
गुड्डू-हा, "था सल्लू,पर अब कहाँ है,नही पता?"
सलमान उठा और गले लगा लिया गुड्डू को.गुड्डू सकपकाया,बोला साहब?
सलमान बोला, "गुड्डू,मैं ही हूँ सल्लू,चल हो जाये गुल्ली डंडा फिर से।"
फिर से वही मैदान,वही गुल्ली डंडा, सल्लू और गुड्डू।
कुछ देर तो गुड्डू खेल भाव मे नही आया,पर खेल आगे बढ़ते बढ़ते,फिर वही बचपन था,शायद बचपन की वापसी और प्यारी मुस्कान।
