बारिशें - I
बारिशें - I




वो नन्ही सी जान अपने हाथों में कागज़ की कश्ती लिए खिल खिला रही थी और बारिश की बूँदों का शोर उसकी हँसी को छेड़ रहा था। अपने छोटे से कदम बढ़ाते हुए “माँ माँ चलो ना छम छम !!” की ज़िद के साथ कैरी उतावली हो रही थी बारिश में खेलने के लिए।
कैरी सिर्फ 4 साल की है और इतनी शरारती नहीं है जितना बारिश में खेलने के लिए हो रही थी। आम तौर पर वो अपनी मम्मी को परेशान तक नहीं करती, ज़िद करना तो दूर की बात है। "माँ माँ! चलो ना जल्दी से!" अपनी बचकानी आवाज़ में मम्मी को पुकारती कैरी अलग ही विचलित हो रही थी। हो भी क्यूँ ना बारिश जो हो रही है। उससे बारिश बहुत पसंद है और यह मौका उससे बार बार नहीं मिलता। पिछली बार जब बारिश हुई थी तो वो कुछ नहीं कर पाई थी। पापा की तबीयत खराब थी और माँ के पास वक्त नहीं था की कैरी की इच्छा पूरी करे। बात यह भी है ना माँ को डर होता है की बारिश में खेलने से बीमार ना हो जाए। यह मैं समझता हूँ, माँ समझती है, पापा समझते हैं पर कैरी के लिए तो यह बात बेगानी है। वो नियम और अपने लिए इनकी परवाह कहाँ समझे। बचे नादान होते हैं कोई शक नहीं।
"इतनी शैतानी करना अच्छी बात नहीं है बेटा! रुको दो मिनट!" कैरी की मम्मी दूसरे कमरे से बालकनी में आते हुए बोली। इस बात का कैरी पर कोई असर नहीं हुआ क्यूंकी वो तो अपनी खुशी में लीन थी और मम्मी का आना उसके लिए सिर्फ एक इशारा था की चलो खेलने। माँ और उनकी हिदायतें! कोई तो समझे!
बालकनी में बारिश की वजह से अच्छा खासा पानी इकट्ठा हो गया था। कैरी का घर सातवीं मंज़िल पर था। पहला कदम रखते ही कैरी की खिल खिलाहट बढ़ी और ज़ोरों से हँसी की आवाज़ गूंजने लगी, पीछे मुड़ कर देखा तो माँ भी पानी में हाथ डाल कर लहरे बना रहीं थी। बच्चों के साथ माँ को भी मौका मिल गया थोड़ी खुशी पाने का। बस और क्या चाहिए था कैरी को वो लगी पानी में उछलने कूदने। कभी यहाँ छोटे छोटे हाथों से बूंदों को पकड़ने की कोशिश की तो कभी दूसरी तरफ पाँव से छम छम किया। अचानक से कैरी का पाँव फिसल और धम्म की आवाज़ आई, इसी के साथ उसकी येलो फ्राक भी गीली हो गई। माँ ने देखा तो पाया की कैरी हँस रही थी, वैसे कैरी है बहुत बहादुर ऐसी छोटी मोटी उछल कूद से चोट लगने पर वो रोने लगती थी पर आज ऐसा कुछ नहीं हुआ।