अख़बार के कवर
अख़बार के कवर


मैं और मेरे जुड़वाँ भाई दोनों की कॉपियाँ अलग अलग दिखायी दे रही थी, सभी बच्चों की कॉपियो से।
बात उन दिनो की है जब मैं और मेरा जुड़वाँ भाई क्लास में पढ़ते थे। हम दोनों हमेशा एक साथ एक ही डेस्क पर बैठते थे, क्यूँकि एक ही किताब होती थी। स्कूल का नाम फ़्लर-डि-लीज़। स्कूल के नाम पर मत जाइएगा, इस नाम का मतलब होता है फूल तलवार की आकृति में। नाम अच्छा है, विद्यालय उतना ही अच्छा था। आर्मी ऑफ़िसर के बच्चे पढ़ने आते थे जो पद्धति आज विद्यालय में है, स्कूल एक व्यवसाय शायद वह आज समझमें आता है।
इन्स्पेक्शन होने वाली थी स्कूल में, सभी टीचर्ज़ ने कहा था की सभी बच्चे अपनी- अपनी कॉपियों पर नया – नया
कवर लगाएँगे।
हम दोनो भाई- बहन हर अध्यापक से पूछते मेम क्या अख़बार के कवर लगा सकते है।
सभी टीचर्ज़ की अनुमति मिल गई, मन में उल्लास था घर पहुँचकर, बसता उधर फ़ैंक कर माँ को सबसे पहले अख़बार की बात बतायी माँ भी ख़ुशी से फूली ना समाई।
वो ख़ुशी और उल्लास से भरा चेहरा शायद उतना ही आज तक मेरे हृदय में गहरा है और सुरक्षित भी।