अभिमान से बचना
अभिमान से बचना
एक मंत्री की सच्ची घटना है। एक राजा ने किसी बात पर प्रसन्न होकर एक बहुत गरीब आदमी को अपना मंत्री बना लिया। वह बड़ी सच्चाई से काम करता था । राजा ने उसे एक बहुत बड़ा महल रहने को दिया। सब प्रकार से उसे संपन्न कर दिया। मंत्री ने एक कमरे का ताला लगा दिया ।किसी को उस कमरे में जाने की आज्ञा नहीं थी। मंत्री ही उसे कभी-कभी चुपचाप खोलता। बहुत दिन के बाद किसी प्रकार राज महल से कुछ जवाहरात तथा बहुत सा धन लापता हो गया, कहीं पता ना चला। मंत्री के नौकरों ने कही राजा के कानों तक यह खबर पहुंचा दी , कि मंत्री जी का एक कमरा है, किसी को उसमें जाने नहीं देते, यहां तक कि उसे वह देखने भी नहीं देते।
संभव है वहां कुछ मिले। राजा एक दिन मंत्री के महलों में अचानक पहुंच गए। सारे महल में घूमे। मंत्री साथ था , हर कमरे को देखते गए। जब उस कमरे पर पहुंचे तो मंत्री से खोलने को कहा।
मंत्री बोला- महाराज ! इसे मत खुलवाइये, यह मेरा निजी कमरा है। राजा ने कहा- अरे देखें तो सही, आपका निजी कमरा कैसा है उसमें क्या है ?
मंत्री ने लाचार हो वह कमरा खोला। राजा ने देखा कि उसमें कुछ फटे पुराने चिथड़े, टूटे-फूटे बर्तन और टूटीसी चारपाई रखी थी। राजा आवाक् रह गया। पूछा- यह क्या है ? मंत्री बोला- महाराज! यही आपसे मिलने के पहले मेरी सारी संपदा थी।
आपके साथ रहने से जो मुझे पूरा वैभव मिला है, मेरी प्रतिष्ठा होती है, उससे जब कभी मेरा मन पर उसका प्रभाव पड़ता है तो आकर इसे देख लेता हूं। इसके देखते ही मुझे याद आ जाता है कि मेरी दशा तो ऐसी ही थी। यही सारी संपदा और वैभव तो आप के दर्शन से तथा आप की दया से ही मिला है। आप जब चाहे इसे छीन सकते हैं। इसलिए मैं इस सब के अभिमान से बच जाता हूं। राजा मंत्री की ऐसी सच्चाई से अत्यंत प्रसन्न हुआ।