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ये चाहते की...

ये चाहते की मोजिज़ा है जो मुझें तेरे इश्क़ की कशिश से अब तक बँधे हुये है ये रिश्तों की मिठास है जो तेरे मेरे चाहत की दरमियाँ में गुड़ की तरह घुले हुये है ये हमारी अनोखी मुलाक़त है सपनों की नगरी में जो मिलने के लिये बेताब हैं।

By Disha Singh
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