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मायके का वो...

मायके का वो कोना, गुज़रे पलों की याद दिलाता है जिस घर जिस आँगन से मेरा जन्मों का नाता है जहाँ बहन के साथ होती थीं अनगिनत लड़ाइयाँ..... पर सब भूल रोज़ होतीं थी प्यार की गलबहियां ! छोटे भाई की राखी पर भर जाती थीं कलाइयाँ... नन्हें हाथों से हमें रुपये पकड़ाती वो हथेलियाँ !

By Anshu Shri Saxena
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