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जब बात...
जब बात नही होती...
जब बात नही...
“
जब बात नही होती ,
अगर तभी कुछ बात बनती है ,
तो सच है की जब बात नही होती ,
तब जरूर कोई बात होती है ,
निकलती हु हजार ख्वाईशे साथ लेके ,
आसु बनके पिघलती है ख्वाईशे ,
जब बात नही होती.
अक्सर पुरे आइने में देखा है,
मैने खुद को टुकडों मे बिखरे हुऐ ,
©दिपाली प्रल्हाद
”
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