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ऐ वक्त !...

ऐ वक्त ! तुझसे न जाने कितनी शिकायतें हैं रुबरु न हो सका सारी दुनिया से मैं काश ! रोंक सकता मैं तुझको तू बन्द मुट्ठी में रेत सा फिसलता जा रहा है ... - आनन्द कुमार

By Anand Kumar
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