उम्मीदों की बाँह थामे निकल पड़े थे मंजिल की तलाश में उम्मीदों की बाँह थामे निकल पड़े थे मंजिल की तलाश में
चाहत सबकी हैं मंजिलें, जिनमें होती हैं रुकावटें। चाहत सबकी हैं मंजिलें, जिनमें होती हैं रुकावटें।