सृष्टि ये चलती तुझसे ही, देवों को भी रचती है तू, सृष्टि ये चलती तुझसे ही, देवों को भी रचती है तू,
दुःख और सुख की यह आँखमिचौली एक स्त्री के भीतर कहीं दूर तक अपना सुरंग रचती चली आ रही है जाने कितनी... दुःख और सुख की यह आँखमिचौली एक स्त्री के भीतर कहीं दूर तक अपना सुरंग रचती चली ...