आज फिर खोई थी ख़्यालों में, चुपके से यादों के झरोखों से। आज फिर खोई थी ख़्यालों में, चुपके से यादों के झरोखों से।
बदबू बढ़ने लगी है ज़रूर कोई ज़मीर सड़ रहा है कहीं अधिराज अब इसे जला दो कि ज़िंदा लाशों की दुनिया अच्... बदबू बढ़ने लगी है ज़रूर कोई ज़मीर सड़ रहा है कहीं अधिराज अब इसे जला दो कि ज़िंदा...