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Aastha thakur

Others

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Aastha thakur

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यादों का बक्सा

यादों का बक्सा

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खिड़की से देखते हुए

यादों में खो गया था।

कुछ खट्टी तो कुछ मीठी 

जो कभी आंखों में पानी लाती 

तो कभी चेहरे पर मुस्कान 

बैठे-बैठे यादों के 

सफर में चलने लगा 

माँ का सुलाना 

और पापा का जगाना 

वह आंचल से मुंह पोंछना

और रोज सुबह 

मेरे साथ दौड़ लगाना 

याद आने लगा ।।


आगे तो बढ़ रहा था 

लेकिन सारी यादों को

पीछे छोड़ कर 

दुनिया देखनी थी

परंतु उन हाथों को पकड़कर 

अगले ही स्टेशन पर 

उतर कर

उस बक्से की तरफ 

बढ़ने लगा 

चौखट पर खड़े होकर 

उन प्रश्न भरी आंखों में देखने लगा 

अपनी दुनिया को 

फिर से अपनी बांहों में लेकर

बोलने लगा

वहां मुझे पापा छोड़ने नहीं आएंगे 

ना मिलेगा आपके हाथ का खाना

प्यार तो बहुत लोग कर सकते हैं 

लेकिन ममता कौन दे पाएगा ?


आपका खिलाना 

और पापा का होटल से खाना लाना 

बिना कुछ कहे ही 

मन की बात जान जाना 

सामने से डांट कर 

पीछे चुपके से रोना 

मेरे जूतों के लिए 

रात भर काम करना 

खुद जमीन पर सो कर 

हमें बिस्तर पर सुलाना 

झगड़ते हुए भी 

मेरे साथ रहना 

अपनी फटी जेब से 

महंगी फ्लाइट की टिकट खरीदना

हमारे बाद सो कर भी

हमसे पहले उठना 

मैं रूठना और आप मनाना 

अंदर से रोते हुए भी 

मुस्कुराते हमें दूर भेजना 

क्या इतना आसान है 

आपसे दूर जा पाना 

जिन हाथों ने था 

मुझे चलना सिखाया 

उन हाथ हाथों को पकड़कर ही

 मुझे है दुनिया घूमना।।


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