यादें
यादें
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बचपन की वह नटखटी बातें
वह भूली बिछड़ी यादें
हवा के झोंको के साथ आई
और दिल को रुलाकर चल गयी I
वह बारिश में कागज की कस्ती
छुटियों में दोस्तों के साथ मस्ती
छूट गए वह सुनहरे दिन वीरान शहर में
बस रह गया उसका एहसास यादों की पन्नो मेंI
कभी बाबूजी की कन्धों में दिखता था जन्नत
कभी माँ की आँचल तले बसता था स्वर्ग
जाने कब छूट गए वह कंधे बिछड़ गयी वह आँचल
पैसे कमाने की चाहत ने भुला दिया वह सारे पलl