○☆○"वसंत ऋतु ○☆○
○☆○"वसंत ऋतु ○☆○
1 min
915
महकने लगा वो उपवन फिर से,
बिखरी मोहिनी छटा मतवाली,
आगमन ऋतु वसंत का जान के,
बलखाने लगी बाग में क्यारी।
मंद-मंद मुस्काएं कलियाँ,
जब मदहोश हवा करे ठिठोली,
डोले मन डालियों का भी,
व्याकुल भ्रमर करे अठखेली।
कोयल पतझड़ भांप रही है,
फिर भी बोले बोली प्यारी।
सुसज्जित तरुणा से मिलने को
तरसे चंचल मन की हरियाली।
मधुमास के बाद में,
उजड़ जाए पेड़ों का श्रृंगार ,
हरे-भरे और घने हैं जो जंगल,
फिर होंगे खाली-खाली ।
बहेगी खुशबू जब फूलों से,
फलों की आएगी बारी।
टेसू खिलेंगे फिर वन-उपवन,
छाएगी अनुपम छटा सुहानी।
