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उलझन में कश्ती

उलझन में कश्ती

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एक कश्ती है

कई सारी दूसरी कश्तियों संग किनारे पर लगी

रात के सन्नाटे में

धीरे-धीरे लहरों पर गोते लगाती

जैसे लोरी सुनाती

उन दो नाबालिग लडकों को

जो दुनिया से बेख़बर सोए पड़े हैं उस कश्ती में

ये सोचते हैं की चाय की कुछ चुस्कियाँ उन्हें हाड़-काँपती ठंड में गरम रखेंगी

अनाड़ी हैं!

ये कश्ती है जो उनकी माँ बनने पर उतारू है

पर वो लड़के तो लंज़ की नर्मी से ही नावाक़िफ़ हैं.


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