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तू क्या समझेगा

तू क्या समझेगा

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बेटा!
तू क्या समझेगा 
माँ की वेदना 
कभी 
तू बेटा है अ
भी
बाप बनेगा कभी
पर माँ नहीं बन पाए
गा।
बिन माँ बने कैसे समझेगा 
माँ की भावनाएं
कैसे दर्द को
 उसके
अपने अंतःकरण से 
महसूस कर पाएगा।
ढ़ेर सारी तकलीफ सह 
जन्म दिया उसने
नाज़-नखरे उठा तेरे 
किया था बड़ा उसने।
जब वही अकाल ही 
काल के गर्त में 
समां जाता है
कितना कष्ट होता है 
तू क्या समझेगा?
आँख से पानी नहीं खून रिसता है
दिल भी पल-पल हर क्षण रोता है।
दिखे तुम्हें अश्रु भले ही ना 
पर आँखे भर आती है 
हर क्षण, पल-पल 
याद कर वह लम्हां।
शरीर क्या वह तो 
लाश बन रह जाती है
तेरे लिए ही बस 
सब कुछ सह जाती है ।
बेटा!
तू क्या समझेगा 
कभी माँ की वेदना
माँ को बहुत कुछ 
पड़ता है सहना...
बहुत ही सहना...
ऐसे मंज़र ना हो घटित 
कभी किसी माँ के जीवन में 
बस कर सकना तो यही 
प्रार्थना तुम!
प्रभु के आगे सदैव  करना।।


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