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मेरे रूह में तू बसती

मेरे रूह में तू बसती

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खबर आई थी कि
तू अस्पताल में है माँ,
सास घर पर थीं
कमजोर दातों को अपने
निकलवा कर-

दोनों को ही 
समान आदर देने के लिए
कल पर छोड़ दिया था
तुझसे मिलना मैंने माँ |
पर कल कभी न आया 
मनहूस खबर आई थी
भागते हुए पहुंची अस्पताल
पर नहीं मिली तू मुझे माँ !

मायके पहुँची तो
वहां तू नहीं थी माँ,
तू हमेशा के लिए मौन थी
तेरा मृत शरीर सामने था,
वह सब अविश्वसनीय था
कि तू नहीं रही माँ !
आंसू थे कि थमने का
नाम ही नहीं ले रहे थे,
आँखों के साथ मन रो रहा था
जब तुझे ले जाने लगे थे
उस तख्ती पर
तो भी समझ नहीं आया
लगा ही नहीं 
कि सच में अब नहीं रही
तू इस दुनिया में माँ !

घर में आईं रिश्तें की
बहन बेटियाँ बहुएँ
जेठानी, देवरानी
सब तैयारी में लगे थे
नहाने और तेरा शरीर जहाँ था
उस स्थान को धोने में
किन्तु हम खोये थे
बालकनी की खिड़की पर अटके
और सोच रहे थे 
कि तू चिता से उठ जाएगी
सब को आश्चर्य में डाल 
लौट आएगी घर
रास्ता तकते रहे थे 
जब तक सब ना आ गए
तब तक तेरे होने की 
खुशखबरी का था
इन्तजार माँ !

पर
ऐसा ना हुआ
फिर भी विश्वास था कि
टूट ही नहीं रहा था
जब जब बेटी का होता है जन्म
सोचते है 
शायद तू उनमें
रूप धर कर आएगी
पर यह भ्रम भी 
एक दो साल का होने पर 
टूट जाता है
क्योंकि 
तुझ सा उनमे कुछ नहीं दिखता ...!

ओ माँ 
तू सशरीर इस दुनिया में भले ना हो
पर मेरे रूह में तू अब भी बसती है...।


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