तू खुद सुबह सी लगती है।
तू खुद सुबह सी लगती है।
सुबह की ताजी हवा सी है वो
सुबह की सुहानी फिजाँ सी है वो
अलसुबह की शीतल ओस सी है वो
(सबेरे) भोर की ताज़ी बयार सी है वो
उसे देखते दिल भरता ही नहीं
लगता है, देखती रहूँ, उसे कुछ ऐसे
भर लो भोर की भीगी खुशबू अपने भीतर जैसे
उसका मीठा बोसा लगता है यूं
अंदर तक समा गई, ठंडी हवा यूं
उसका स्पर्श बिल्कुल है ऐसा
छूकर गया हो, सहलाता सा झोंका
सिर पर मेरे फिराती वो नन्हा सा हाथ
चूमना, मासूमियत से आँखों को मेरी
कितना नाजुक, पिघलता सा है वो अहसास
आगोश में भर करती, जब मुझसे वो प्यार
सहलाती मुझको जैसे, मंद-मंद बहती बयार
उस रोज, सुबह-सुबह जब मेरे संग वो निकली
नन्हीं परी ने, आँखे बंद कर ली अपनी
खो गई, जैसे एक प्यारी सी दुनिया में
एंजेल सी चमक थी, सुंदर से चेहरे पे उसके
होठों पर थी उसके शीतल सी मुस्कान
अपनी छोटी-छोटी बाहों का घेरा मेरे गले में डाल
ऑंखें में सितारे भर कहा उसने
माँ... मुझे सुबह बहुत अच्छी लगती है
अनहद नाद सा बज उठा, अंतस में मेरे
मंदिर में बज गई, घंटियाँ जैसे
सच, कहकर चूमा, मैंने उसकी कोमल पेशानी को
मन मेरा लहरा, लहरा गया, सोचकर के
महसूस कर पाती है, मेरी नन्हीं सी कली
सुबह की पावन खूबसूरती
मैं जैसे बन गई खुद कविता
सुन मेरी बिटिया की अनुभूति की
काव्यमयी अभिव्यक्ति
कितनी प्यारी होती हैं, बेटियां
प्यार के सोते फूट पड़े भीतर
खिल उठीं, खुशियों की फुलों-फुलों की बीथियाँ
भरी थी उसकी आँखों में निर्मल खुशी
सीप सी ऑंखें बंद कर,
बड़े प्यार से फिर वो मुझसे सटी
होठों पर उसके मुस्कान सजी
झर-झर झरते झरने सी आवाज में
फिर कहा उसने
है ना माँ, सुबह, कितनी अच्छी लगती है ना
अब अपने आँचल में उसे समेट कर
पेशानी उसकी चूमकर
प्यार सी महकती कविता जैसे निकली मेरे अंतस से
बेटी, मेरी, मुझे तो
``तू खुद सुबह सी लगती है''
