तुम्हारे होंठ
तुम्हारे होंठ
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हां मैंने देखे हैं तुम्हारे होंठ
जो मुझसे बहुत दूर ....हजारों मील दूर
फोन के दूसरी तरफ सटे रहते हैं।
उनका थिरकना
उनका मुस्कराना
फिर उनका सहमना
सब कुछ देखा है मैंने
अपने मन की आँखों से!
जब वह बुलाते हैं मेरा नाम
बार बार सुना वही अपना नाम
पहली ही बार सुना-सा लगता है।
उन होठों के हंसने पर
सृष्टि की प्रथम हंसी सुनाई देती है। मुझे।
...और जब वह सिर्फ मेरे हो जाते हैं
तब ब्रह्माण्ड और उसके हर ग्रह की
प्रत्येक परिक्रमा
वहीं पे थम जाती है
अनंत काल के लिए।