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Vinod Silla

Others

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Vinod Silla

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तुम लेखक नहीं

तुम लेखक नहीं

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सिर्फ तुम ही नहीं

तुम से पूर्व भी थी

पूरी जमात भांडों की।

जो करते रहे ताथाथैया

दरबारों की धुन पर।

चाटते रहे पत्तल

सियासी दस्तरखान पर।

हिलाते रहे दुम

सियासी इशारों पर।

चंद रियायतों के लिए

चंद सम्मान-पत्रों के लिए।

करते रहे कत्ल

जन भावनाओं का।

करते रहे अनसुना

करुण चीखों को।

करते रहे नजर अंदाज

अंतिम पायदान के

व्यक्ति की पीड़ा।

तुम लेखक नहीं

नर पिशाच हो।



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