तर्पण
तर्पण
जब मैं आ रहा था माँ के गर्भ में,
कितनी खुशियां मनाई जा रही थी।
कोई माँ की गोदी फल मेवे नारियल से भर रहा था।
कोई मां के कानों में मधुर गीत
सुना रहा था।
कोई मीठे शरबत पिलाता कोई पेड़े।
उस मधुरता को मैं अन्दर से महसूस कर रहा था।
किसी को कोई द्वेष न था मुझसे
सब प्यार लुटा रहे थे।
फिर मेरा जन्म हुआ और
मिठाई बटने का सिलसिला शुरू हुआ
इधर मैं नहलाया जा रहा था।
मिठाइयां बटी पर मैंने एक न चखी।
मैं तो बस माँ को पाकर खुश था।
मां की गोद से उतर के चलना सीख गया था।
खेलना दौड़ना पढ़ना सब सीख रखा था।
मां की गोदी से क्या उतरा फिर
कभी गोदी नसीब न हुई।
संघर्षो भरा जीवन शुरू हो गया।
हर घूँट में न जाने कितने कतरा
विष पिया।
पर महादेव थोड़ी ही था।
लोगो की ईर्ष्या द्वेष में उलझता रहा।
कुछ बहुत प्रेमी भी मिले
इस नश्वर संसार मे
कभी शूल तो कभी फूल
कभी मां पिता की रज धूल
जीवन बीतता रहा माँ पिता भी तारे बन गए।
भाई बहन भी न्यारे हो गए।
कभी मैं गलत हो गया कभी
वो गलत हो गए।
इस सही गलत के कारण।
न जाने कब मनभेद हो गए
अपना बच्चे भी बड़े हो गए
हम भी न जाने कब बूढे हो गए।
आज जाने की बारी मेरी थी
जाना की खुशी थी पर अपने
प्रिय बन्धुओं को कभी दोबारा
न मिल पाने का दुख
सबसे माफी मांग रहा था और
सबको मन से माफ कर रहा था।
सब रो रहे थे मैं भी।
लेकिन ये आँसू शांति के थे।
जाने की इस रीत में सब भावुक था
मेरे जाते ही मेरे शरीर को नहलाया गया।
मैं मन्द मन्द मुस्कुरा रहा था
प्रभु क्या तेरी लीला
जब आया तो सबने नहलाया
जब जा रहू तो सब नहला रहे
लेकिन इस आने जाने के बीच
न जाने कितना कीचड़ उछाल रहे।
आज मेरा श्राद्ध हो रहा
खीर बाँट कर मेरा आखिरी काम
भी सम्पन्न हो रहा
जब आया तब मीठा जब जा रहा हूँ
तब मीठा
लेकिन इस आवागमन के बीच
कभी कोई मिठास दिखी ही नही।
मैंने तब भी न चखी
मैंने अब भी न चखी।
मेरे आने पर भी सब एक थे
मेरे जाने पर भी एक हैं
बस यही प्रार्थना है मेरी
अब सब एक रहे।
इनके आपसी सद्भाव से
मैं सदा तृप्त रहूँगा।
अब मैं पुरखों में विलीन हूँ
तुमको सदा आशीष ही दूंगा
बस तुम मेरी बात मानो
ये मिठास ही तर्पण है
हर एक जीव की
इससे से मोक्ष मिलेगा
सबके जीवन को
भर दो मिठास से
आवागमन के इस खेल में
अगर कभी दुबारा आऊँ तो
इस मिठास से भरना मेरा जीवन
क्योंकि यही असली आभार है
हम सब के पुरखों के लिए!