समाज की एक विसंगति पर (30)
समाज की एक विसंगति पर (30)
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संगठन के राजा तुझे
फिर से दूल्हा बना दिया,
तेरी एक सोच ने समाज को
फिर से लूला बना दिया,
संगठन की साख पर
कुंडली जमा के बैठे हो,
समाज को कर गुमराह
धूनी रमा के बैठे हो,
समाज के बंधुओं को
तूने निठल्ला बना दिया,
तेरी एक सोच ने.........!
समाज को फिर से
लूला बना दिया,
कद तेरा छोटा और
दिमाग गोदाम हो गया,
गफलत की गहरी नींद में
तू कहां खो गया?
संगठन को तूने
मदारी का झोला बना दिया,
तेरी एक सोच ने..........!
फिर से समाज को लुला बना लिया !!
