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Mahavir Uttranchali

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Mahavir Uttranchali

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श्री रामनामी

श्री रामनामी

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देह जाय तक थाम ले, राम नाम की डोर

फैले तीनों लोक तक, इस डोरी के छोर।


भक्तों में हैं कवि अमर, स्वामी तुलसीदास

‘रामचरित मानस’ रचा, राम भक्त ने ख़ास।


राम-कृष्ण के काज पर, रीझे सकल जहान

दोनों हरि के नाम हैं, दोनों रूप महान।


छूट गई मन की लगन, कहाँ मिलेंगे राम

पर नारी को देखकर, उपजा तन में काम।


सियाराम समझे नहीं, कैसा है ये भेद

सोने का कैसा हिरन, हुआ न कुछ भी खेद।


वाण लगा जब लखन को, हुए राम आधीर

मै भी त्यागूँ प्राण अब, रोते हैं रघुवीर।


मेघनाद की गरजना, रावन का अभिमान

राम-लखन तोड़ा किये, वक़्त बड़ा बलवान।


राम चले वनवास को, दशरथ ने दी जान

पछताई तब कैकयी, चूर हुआ अभिमान।


राजा दशरथ के यहाँ, हुए राम अवतार

कौशल्या माँ धन्य है, किया जगत उद्धार।


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