शरद पूर्णिमा की एक रात
शरद पूर्णिमा की एक रात
1 min
384
नवरात्र की शरद बेला
और यह बिखरी चांदनी,
आए हैं महारास रचाने
बनवारी नारायणी।
पूर्ण चंद्र सोलह कला में
फैला रही जग में ज्योति,
अर्ध रात्रि की यह बेला
लगे बड़ी मनभावनी।
भर लो गगरी अमृत से
मयंक बना है दानी,
भोर पहर जब जागोगे
मिलेगा ओस-पानी।
पियुष पाने की चाहत में
वसुंधरा खड़ी चौड़ी छाती,
कहे बाबा का नारायण-
"जाग रे दुनिया"
चाहे रंक या धनवानी।
