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Aarti Rajpopat

Others

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Aarti Rajpopat

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'सहजीवन'

'सहजीवन'

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जीवन राह पे चलते मिले दो राही

एक संजोग रचा


मिली आँखे, हंसे होठ, दिया जन्मो का कोल

एक किस्सा हुआ।


ले के हाथों में हाथ चले दोनो संग

एक संबंध बंधा।


जुड़े एक दूजे से फिर भी

अलग ऐसे दो स्तंभ पर

एक सेतु रचाया


जीवन राह है आसान साथ चले जो हरदम

ये राज़ समझाया


तू तू में में, लड़ाई, रूठना मनाना, एकमेव बनने का

उत्सव मनाया।


पल्ला तेरी तरफ झुका तो तुझको,

आंनद मुझको ऊपर जाने का

ऐसा मधुर नित्य खेल

खेलाया


वैवाहिक जीवन की खट्टी- मीठी सुहानी सफर का

ऐसा लुत्फ़ उठाया।



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