शिव शंकर है नर्तन करते
शिव शंकर है नर्तन करते
रिद्धि-सिद्धि की रैन है आई,
बाजे शिव-विवाह शहनाई।
आध्यात्मिक उपवास है लाई,
जग के लिए शिव करें भलाई।
चन्द्र मास चौदहवाँ वार,
अमावस्या के पूर्व का काल।
महाकाल का आता काल,
काटे जो जग जंजाल।
शुभ गुण का भक्त पूजन करते,
शिव शंकर हैं नर्तन करते।
गरज-गरज बादल है गरजे,
चमक-चमक बिजली है चमके।
हुंकार भरे कुंजर चिग्घाड़े,
वनराज क्रुद्ध होकर के दहाड़े।
हिलने लगे धरा का अंचल,
जीव जगत में होती हलचल।
कैलास में डमरू बाजे डमडम,
सागर में लहरें उठे चमचम।
मन्त्रमुग्ध सावन जब बरसे,
शिव शंकर हैं नर्तन करते।
नाच रहे शिव महा दिगम्बर,
जटा जूट शंकर आदिश्वर।
भाल चन्द्रमा सोहत राजे,
गले सर्प की माला साजे।
कर त्रिशूल, नरमुंड बिराजे,
ललकार करे शत्रु दल भाजे।
धरे जहां पग धरती धूजे,
असुरों से लड़ वो रण जीते।
त्रिनेत्रधारी है काम जीते,
शिव शंकर हैं नर्तन करते।
सृष्टि धन्य हो गई सब जीते,
कालकूट शंकर जब पीते।
भंग-धतूरा शिव को भाते,
सब मन का आशीष है पाते।
औघड़ का जब वेश बनाते,
भूत बैताल नजर न आते।
महाकाल शिव शंकर न्यारे,
भक्तों के है वे रखवारे।
तिहुँलोक में होते जयकारे,
शिव शंकर हैं नर्तन करते।
