शीर्षक- नादानी
शीर्षक- नादानी
हमें कहना नहीं आया उन्हें सुनना नहीं आया
बहुत हैं कीमती मोती उन्हें चुनना नहीं आया,
नेह के कोमल धागों को उन्हें बुनना नहीं आया।
था कहना भी बहुत कुछ पर खामोशी से छुपाते हैं,
हमें कहना नहीं आया उन्हें सुनना नहीं आया।
ज्वार उठते बहुत भारी है उनका शोर अलबेला,
न हो कोई साथ में चाहे रहे चाहे सदा मेला।
तरंगें भाव की मन के किनारे से है टकरातीं,
नवल स्वरों में डूब के जाने कितने गीत गाती।
चाहते वो घुलें प्रेम के रंग में उन्हें घुलना नहीं आया,
हमें कहना नहीं आया उन्हें सुनना नहीं आया।
इजाजत नैन की पाते तो मयखाने सजा देते,
उन्हीं नैनों को हम अपने आशियाने बना लेते।
लफ़्ज़ चाहत के हम लेकर कहानी फिर कोई लिखते,
फ़क़त एहसास ही उसमें जो पढ़ते तो उन्हें दिखते।
चाहते थे गुनें वो भी उन्हें गुनना नहीं आया,
हमें कहना नहीं आया उन्हें सुनना नहीं आया।