शहर चला आया
शहर चला आया
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मैं खुशी अधूरी छोड़कर शहर चला आया
गाँव के कुछ रिश्ते तोड़कर शहर में
रिश्तेदार बनाने आया
सफर गाँव से शहर का कुछ मीलों का था
पर फासला तो अपनों के दिलो से था
मेरा हर कदम अब बढ़ रहा था शहर की
तरफ
और दिल में कुछ उत्साह सा था
रौशनी शहर कि देख रखी थी मैंने
सिर्फ मीलों दूर से
और कुछ किस्से सुने थे किसी और से
यहाँ शहर पर नशा तो कुछ और ही था
चल रहा था सैकड़ों कि भीड़ में फिर
भी मैं अकेला ही था
गाँव के अंधेरों में भी साया था अपनों
इस शहर के रौशनी में भी मुझे खो
जाने का डर था
मैं गाँव मे अपने मिट्टी के आशियाने को
छोड़कर शहर के बड़ी इमारतों में
कैद होने आया
मैं अपना सब कुछ छोड़कर शहर
चला आया ...मैं शहर चला आया.....
