शाखा शाखा नव पल्लव है
शाखा शाखा नव पल्लव है
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शाखा शाखा नव पल्लव है
शाखा शाखा नव पल्लव है,
पूरित पराग से कली कली।
इतराते तरू खुद ही खुद पर
क्या खूब सजी है जूही, चमेली।
मन भँवरा ये देख है भटका,
उसे बुलाती कलियाँ अलबेली।
धानी चूनर ओढ़े अचला,
गिरिराज से करती अटखेली।
शाखा शाखा नव पल्लव है
पूरित पराग से कली कली।
शीशम में यौवन है जागा,
गेहूँ ,जो में आ रही बाली।
सौंधी गंध ले हवा चली,
सरसों हो गई है मतवाली।
शाखा शाखा नव पल्लव है
पूरित पराग से कली कली।
प्रकृति के अंगों में तरुणाई फूटी,
वसुधा ने श्रृगांर किया।
चिड़िया का गुंजन गुँजा है,
कोकिल ने सुर ताल दिया।
कामदेव सुत झूल रहे हैं
डाली डाली कली कली।
मलय समीर मस्ती संग में,
बहने लगा है गली गली
शाखा शाखा नव पल्लव है,
पूरित पराग से कली कली।
