ज्ञान दीप ले प्रज्ञा जन्मी
ज्ञान दीप ले प्रज्ञा जन्मी
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ज्ञान दीप ले प्रज्ञा जन्मी
प्रकृति ने किया अभिनन्दन।
हँसवाहिनी ,ज्ञानदायिनी,
बुद्धिदायिनी माँ को नमन।
वसंत माह की रुत ये निराली,
ज्ञान प्रेम का है ये मिलन।
माघ शुक्ल की शुभ्र चन्द्रिका
,प्रफुल्लित करती तन मन।
नव आभा, नव स्फूरन
ले खिले सुमन,
मादकता ले बहे पवन।
मतवाला मधुकर करता है,
कली कली से प्रणय निवेदन।
हुई लाज से नव कली अब,
सुन भँवरे की गुन गुन गुन।
सृष्टि ने भी पुष्पमाल ले
किया माते् का अभिनन्दन।
पल्लव का पल्लव से चुम्बन,
ज्यों अधरों का अधरों से मिलन।
तरू ने कर से ताल है दीन्ही,
मन्द गंध से महक उठा चन्दन वन।
बाद बगीचे वन उपवन,
भा रहा सबको नव वसंत यौवन।
रुत वसंत की अगवानी में
मोर पपीहा कर रहे हैं गुन्जन।
ज्ञान दीप ले प्रज्ञा जन्मी
प्रकृति ने किया अभिनन्दन।
