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Srabani Nath

Others

2  

Srabani Nath

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सावन

सावन

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रे सावन 
 तुझ बिन तड़प  रहा  ये मन 
सूखी धरती उजड़े  चमन 
सूखी  नदी सूखा आसमान 
अबतो आ
 ना बन अनमन रे सावन 
 तु आये तो खिले चमन 
धरती हँसे हँसे गगन
नदी में आये नवजीवन 
अबतो आ
न बन अनमन रे सावन 
 तेरे छुने से खिला तनमन
आँखों  में प्यार दिल में दिवानापन
 सुन्दर हुआ सरल जीवन
अबतो आ
न बन अनमन.


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