मधु कोटिया निर्मोही

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मधु कोटिया निर्मोही

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सांझी जान बेटियाँ

सांझी जान बेटियाँ

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शरीर से कोमल 

मन की मज़बूत

हौसलों की उड़ान

हम सबकी शान, 


त्यौहारों की उमंग

खुशियों के रंग

मन की तरंग 

कभी छंद पर छंद, 


माँ से मनपसंद 

साग की मनुहार

बापू से कहें 

पोशाक़ लूंगी उपहार

छोटी का कान पकड़

लगा देती फटकार, 


नाना नानी और 

दादा दादी से

सीख लेती हज़ार

चाचा की बाइक चाहिए

दिन में बार बार, 


रोज़ बुआ मामा मौसी

स्नेह से लेते पुचकार

मास्टर जी भी करते 

तारीफ़े हज़ार, 


प्रतिकार कभी नहीं करतीं

बिन बोले हर भाव कह जातीं

पर ज़रुरत पड़े तो चंडी भी बन जातीं

घर की खुशियों को मोहल्ले भर में फैलातीं

बेटों को भी प्यारी हैं बेटियाँ, 


तेरी मेरी नहीं 

सबकी सांझी जान हैं बेटिया

विदा हो जाए तो सूना महल

सूना हो जाए घर, सूनी गलियां, 


हमें आशावादी बनातीं

निराशा से उबारतीं

हमारा दायित्व निभाती

धरोहर हैं बेटियां, 


अब भी क्या सोच रहा

कहना है बहुत कुछ

जानता भी है सब कुछ

फिर भी... 

बिटिया दिवस पर तो कह दे 

कि हां

हां... मुझको भी जान से प्यारी हैं बेटियाँ 

मुझको भी जान से प्यारी हैं बेटियाँ!



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