रंगों की जंग
रंगों की जंग
कोरे कैनवास पर छिड़ी थी रंगों की जंग
लाल ने अपनी पकड़ जमाई कहा इश्क का रंग हूं मैं भाई
हाथ मिला लाल संग पीले ने धीरे से अपनी जगह बनाई।
लाल ने पीले में मिलकर नया इक रंग बनाया
प्यार से वो नारंगी कहलाई।
रंग कोमल हूं मैं, वात्सल्य और प्रेम की निशानी।
शरमाते हुए कैनवस पर गुलाबी रंग उभरी।
मेरे बगैर सब फीके हैं कह हरे ने अपनी ताजगी बिखेरी।
हटो जगह दो मुझको भी कह नीले नीले छींटों ने अपनी जगह भरी।
कैनवस हो गई रंग बिरंगी।
हम भी साथ चलते हैं कह जुड़ गए सफेद श्याम( काला) और थोड़ी सी बैंगनी।
मिलकर इक दूसरे में ये रंग देते प्यार की मिसाल
बिन खोए अस्तित्व अपना करते हैं कमाल।
हर रंग खुद में होता है पूरा ,कुछ चटक, कुछ हल्का कुछ भूरा।
रंगों से सीख ली ये बात मैंने निराली।
खिलकर निखरना है तो बिखरना है जरूरी
रंगों की जंग ने कर दी खूबसूरत पेंटिंग मेरी पूरी।