रह़म-ए-ख़ुदा
रह़म-ए-ख़ुदा
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चौकन्ना रहती हूँ हर वक़्त मैं
तेरी हिफाज़त के लिए मौला
तू है कि अलग-थलग बटकर
अपनी दुकान लगाए बैठा है
लड़ती रहती हूँ हर दफ़ा मैं
हजारों धर्म के ठेकेदारों से ,
तू इंसानियत तन से छोड़ के
ढेरों किरदार सजाए बैठा है
पहन पोशाक आदिले आबरू की
अब सजा नेक करने की ख़्वाहिशें ,
तू है कि भूलकर उन गुनाहगारों को
मुझ पर ढेरों इल्ज़ाम लगाए बैठा है