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Mahavir Uttranchali

Children Stories Inspirational

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Mahavir Uttranchali

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पर्यावरण के दोहे

पर्यावरण के दोहे

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छह ऋतु, बारह मास हैं, ग्रीष्म-शरद-बरसात

स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात //


कूके कोकिल बाग में, नाचे सम्मुख मोर

मनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर //


खूब संपदा कुदरती, आँखों से तू तोल

कह रही श्रृष्टि चीखकर, वसुंधरा अनमोल //


मन प्रसन्नचित हो गया, देख हरा उद्यान

फूल खिले हैं चार सू, बढ़ा रहे हैं शान //


मानव मत खिलवाड़ कर, कुदरत है अनमोल

चुका न पायेगा कभी, कुदरत का तू मोल //


आने वाली नस्ल भी, सुने प्रीत के गीत

कुदरत के कण-कण रचा, हरयाली संगीत //


फल-फूल कंदमूल हैं, पृथ्वी को वरदान

इन सबको पाकर बना, मानव और महान //


कर दे मानव ज़िन्दगी, कुदरत के ही नाम

वृक्ष -लताओं पर लिखा, प्यार भरा पैग़ाम //


हरियाली के गीत मैं, गाता आठों याम

कोटि-कोटि पर्यावरण, तुमको करूँ प्रणाम //


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