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Kamal Krishna

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Kamal Krishna

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प्रश्न

प्रश्न

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एक आवरण ओढ़े हूँ मैं,

जो असली है या नकली है,

यही जानने निकल पड़ा हूँ।


पग पग मैंने वर्षा झेली,

पग पग पर तूफान मिला,

मैं अडिग रहा और खड़ा रहा,

मैंने खूब संघर्ष किया।


औंधे मुंह मैं आज गिरा हूँ,

फिर भी सम्बल है ईश्वर का,

खड़ा हुआ हूँ आगे बढ़ने को,


एक आस है मन मस्तिष्क में,

एक आस है जीवन गति में,

एक सवेरा आएगा

जीवन तम को ले जाएगा


शायद बगिया में पुष्प खिलेंगे,

असफल जीवन में अरूणोदय होगा

खुशियों का इंद्र धनुष मुस्कायेगा


क्या ऐसा दिवस कभी आएगा?

जब मैं पूर्ण पुरुष कहलाऊँगा

बेचारे की संज्ञा से क्या मैं ऊपर उठ पाऊंगा?


ज्वार और भाटे के मध्य फंसी हुई जीवन नैया को

क्या मैं पार लगा पाउँगा?


यही प्रश्न हैं, जो मेरे

सम्बल और अभिप्रेरक हैं,

मेरे जर्जर वृद्ध हृदय के

सर्वाधिक उत्प्रेरक हैं,


इन प्रश्नों के उत्तर पर

क्या मैं खरा उतर पाउँगा?

अगले वर्ष मिलूंगा तुमसे

तब शायद उत्तर कविता में दे पाउँगा।


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