प्रकृति कृष्ण माया
प्रकृति कृष्ण माया
भरें अन्जुमन आँचल मै प्रकृति की सुहाना सफ़र ****🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
ढलते सूरज और उस के नाज़ुक कशिश ये अदा,*🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
कुछ तो है वादियों की ख्वाहिश****🍁🍁
पंख फईलाये दूर गगन की धुरि के अधूरी**
भीनी भीनी ख़ुशबू आऐ मिलन की रात पूरी*
चाँद सितारों की लगे है महफ़िल**
और चाँद की है चाँदिनी***🍁🍁🍁
झिलमिल झिलमिल करते सितारे लेंं अपने हसीन अदाऐं**🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
महफ़िल की रौनक छा रही अपने ही सबाबें*
क्यों है ऐसा क्यों न है वो ***??🍁
क्या है ये**कईसे है वो *मजबूरी**??🍁
खोज रही है अपने आप को उस महफ़िल में*
कोई ना जाने किस के लिऐ वो कईसे हुऐ जो शामिल***🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
ख़ुशबू बदन की महके जो हरदम
खिंचे तुम्हारे निगाहों की कशिश
और मिट ने लगे है जो गम्***🍁🍁
साथ चलते चलते ओ साजन प्यार जो हमें मिले***********🍁🍁🍁🍁🍁🍁
मन में बसे हो दिल की धड़कन ज़रा गौर से सुनो************🍁🍁🍁🍁🍁🍁
ना कुछ बोलो ना कुछ कहो धीरे से फूलों को चुनो*************🍁🍁🍁🍁🍁🍁
मीत मिलन की ऋतु आई है ले मधुर मिलन**
हाथोँ पे चाँद होगा ज़रूर और *होंठों पे चाँदनी होंगे ज़रूर*****🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
भरते अंगड़ाईओंं में भी हैं ओह महसूस* हर पल रहे है ख़ुशनसीबी से ख़ुश*****🍁🍁🍁🍁🍁🍁
यूँ के है जो जितना अरमान सब तो हुऐ है पूरे ख़ुश
