प्रेम की राहें
प्रेम की राहें
आजकल कुछ अनजान रहो पर चलती जा रही हूँ
जहाँ भी देखूँ खुद को कुछ अलग पा रही हूँ
ना जाने यह कैसा एहसास है, कुछ अलग सा है कुछ खास है,
पहले ऐसा कभी नहीं हुआ पता नहीं क्यों हो रहा इस बार है.
जानती हूँ सब साथ है मेरे फिर भी ना जाने क्यों खुद को सब से अलग पा रही हूँ,
लग रहा डर इन राहो पर, कहीं खो ना जाऊँ मैं,
कोई तो है साथ बस इस आस में चलती जा रही हूँ।
हालातों को मात देते -देते थक चुकी हूँ,
फिर भी उसके लिए जीती जा रही हूँ
जानती हूँ कोई साथ नहीं देगा इसलिए
खुद को उसके साथ जोड़ती जा रही हूँ.
बढ़ते कदम रुकते नहीं, चलते - चलते थकते नहीं,
पहुँचूँ किसी मंजिल पर जल्दी, यह खुद को समझा रही हूँ।
इस राह पर चलते - चलते अपनों से दूर और उसके करीब होती जा रही हूँ।
माना की मुश्किल है ये सफऱ परन्तु यह सोचकर कि
एक दिन सब कुछ ठीक होगा आगे बढ़ती जा रही हूँ।
अंदर बहुत शोर है दुखो का फिर भी मुस्कुराते हुए जीती जा रही हूँ।
प्रेम की इन अनजान राहो पर बिना कुछ सोचे बिना कुछ समझें
बस उसके लिए चलती जा रही हूँ, बस चलती जा रही हूँ।