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Ritu Vyas

Others

1.0  

Ritu Vyas

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पराया धन

पराया धन

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बेटी लक्ष्मी का रूप है,

जाने यह कितना सच ,कितना झूठ है।


जिन हाथों को पकड़ कभी चलना सिखाया,

आज उन्ही हाथों में मेहँदी रची है।


वक़्त ना जाने कैसे बीत गया,

आज उसी बेटी की डोली सजी है।


दुल्हन बनकर, सज -धज कर,

आज बड़ी वो खुश है,

माँ -बाप, परिवार छूट जायेंगे,

आज बस यही एक उसे दुःख है।


जब बिछड़ना है फिर मिलने के लिए,

फिर भी क्यों आँखें भर आती है,

बेटी पैदा ही होती है जाने के लिए,

फिर क्यों सब रोते है जब वो ससुराल जाती है।


जब जब उसकी याद सताए,

घर पर मिलने वो आती है।

अपनी ही कोख से तो जनम दिया,

फिर क्यों परायी कहलाती है ?


दो परिवारों में बंटकर भी,

वो खुश रहती है,

उसकी दुविधा वो ही जाने,

किसीसे ना कुछ कहती है।


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