नन्ही सी वह चिड़िया प्यारी।
नन्ही सी वह चिड़िया प्यारी।
नन्ही सी थी वह चिड़िया प्यारी, चहचहाती फिरती थी।
शाम ढले फिर आकर आंचल में, मां के वह छुप जाती थी।
था सुकून उस आंचल में, चैन से वह सो जाती थी।
ख़्वाबों के आशियाने बुनती, वह सपने कल के संजोती थीं।
हर ख़्वाब था उसका निराला, हर दिन में वो तो जीती थी।
हलकी सी मुस्कान लिए, जग में उजियाला कर जाती थी।
वहीं हँसी वह मुस्कान आज न जाने क्यूं नदारद सी है।
ख़्वाबों के आशियाने में भी छाई क्यूँ ख़ामोशी है।
नन्ही सी वह चिड़िया प्यारी, क्यूँ दिल पे बोझ लिए है।
ऐसी भी क्या बात हुई जो उसकी आंखे नम सी है।
उड़ने को थे बेताब पंख जो क्यूँ लगते यूं अब मायूस से हैं।
बाहें फाहलाए खड़ा गगन भी उसकी राहें देख रहा है।
उठ जा चिड़िया प्यारी क्यूँ तू जग से रूठी है?
तेरी खामोशी में पगली दुनिया ये तो टूटी है।
प्यारी सी वह मुस्कान तेरी, देख कभी पवन भी तो इतराती थी।
चहक तेरी सुन कभी, धुन मल्हार की भी शरमाती थी।
मूंद लीं जो आँखें तुमने, थी गुम वह कभी ख़्वाबों में।
सोए है जो पंख आज, कभी मुस्काते थे दूर गगन में।
बरामदे में खड़ा सवेरा देख तुझ को यूं पुकार रहा है,
क्यूँ तू बंद है यूं अंधेरे में। क्यूँ बिछाए नमी तू इन आँखो में है।
उठ फिर से एकबार तुझे, उड़ान ऊंची भरनी है।
छोड़ फिकर दुनिया जहां की, तेरी मंज़िल तुझि को पानी है।
नफ़रत भरी इस दुनिया में धोखे तो यूं हजार मिलने है,
दिल टूटने है कहीं बार तेरे, हौसले भी डगमगा जाने है।
पर कुछ है तेरे पास, तो ये सपने ही तो है,
संग इन्हे मीत बनाकर उड़ाने ऊंची उड़नी है।
उठ जा चिड़िया प्यारी क्यू तू जग से रूठी है?
तेरी ख़ामोशी में पगली, दुनिया ये तो टूटी है।