मुस्कुराता अधखिली कली सा
मुस्कुराता अधखिली कली सा
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कोने की कुर्सी पर
मद्धिम धूप में
कुछ लिखने को
बेचैन सी उंगलियां
मेज पर थिरकती
मन को उद्वेलित करती
सुकून के पल बटोरती चल पड़ी
सामने मोहक सा दृश्य
जमघट साठ पार का
सेवाओं से निवृत
चिंताओं से मुक्त
अतीत में जी रहा
सांत्वना भी दे रहा
तन से कुछ सुस्त सा
मन किंचित विरक्त सा
दिखा जीवनमुक्त सा
मुस्कुराता अधखिली कली सा।