मुझे डर लगता है
मुझे डर लगता है
मुझे डर लगता है उन नेताओं से जो
दिन रात झूठ बोलते हैं
झूठे वादे करते हैं
ईमानदारी का ढोंग करके
अपना घर भरते रहते हैं ।
धर्मनिरपेक्षता की आड़ में
एक धर्म विशेष का पक्ष लेते हैं
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर
देशद्रोहियों की वकालत करते हैं ।
मुझे डर लगता है
उन बड़े बड़े नौकरशाहों से
जो सत्ता के गुलाम बन गए हैं
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं
कामचोर, निकम्मे बने गये हैं
समस्याओं का समाधान करने की अपेक्षा
समस्याओं को लटकाने में विश्वास करते हैं
मुझे डर लगता है
उस पुलिस से जो
आमजन में भय पैदा करती है
और अपराधियों के संग में
दारू पार्टी करती रहती है
थानों में भी बलात्कार करती है
रिश्वत में अस्मत मांगती है ।
मुझे डर लगता है
उस न्याय व्यवस्था से जो
आतंकवादियों के लिए रात के
बारह बजे भी खुल जाती है
लेकिन आम आदमी इसकी चौखट पर
न्याय की आस में दम तोड़ देता है
और उसे मिलती है सिर्फ एक तारीख ।
मुझे डर लगता है
लोकतंत्र के उस चौथे स्तंभ से
जो पैसों की चकाचौंध में भूल गया है
पत्रकारिता और झूठी खबरें चला रहा है
अपने "आका" का एजेंडा चला रहा है
जो बैठ गया है किसी की गोदी में ।
मुझे डर लगता है
उस समाज से जहां
आज भी जात पात का बोलबाला है
नारी के साथ आज भी भेदभाव होता है
अनेक कुरीतियों के कारण
सब कुछ नष्ट हो जाता है
रिश्ते तार तार हो जाते हैं
इंसान दानव बन जाता है.
