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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मस्तमौला

मस्तमौला

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स्वच्छंद, आनंद के सागर में गोते लगाता

न फ़िक्र, न चिंता प्रकृति से खुद जोड़े रखता

खुद को कर्ता मानने के दंभ से दूर

ईश्वर पर रखता संपूर्ण विश्वास

उस पर ही सब कुछ छोड़

जीता है वो अपने ही बेलौस अंदाज में


हर पल खुश रहता, हर दिन को उत्सव सा गुजारता

न लाभ की चिंता, न हानि का डर

न लोगों की उलाहनाओं से विचलन

बस जीता जाता है अपने ही अंदाज में

हर क्षण को संपूर्णता में जीने की कोशिश में

बिना मायूस हुए, कमी का रोना रोये बगैर

बस खुश है वर्तमान में


आने वाले पल में भी खुद में बिना बदलाव के

जाना चाहता है वो मस्त मलंग फकीर सा

वो जानता है ईश्वर को, उसकी व्यवस्था को

तभी तो मस्तमौला बनकर जीता है

जीवन का असली आनंद भी वो ही उठाता है

हमें आपको जीवन को पाठ पढ़ाता है


जो हमें आपको समझ कहां आता है

क्योंकि वो तो हमें पागल जो नजर आता है

और हमें भरमाने वाला जादूगर लगता है

पर वो तो असल में सच्चा मस्तमौला है

भोलाभाला बड़ा होकर भी बच्चा है। 


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