Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

sanyukta tyagi

Others

4.5  

sanyukta tyagi

Others

मंथन

मंथन

1 min
251



सुधा गरल दोनों मेरे अंतस में निहित

स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करने को आतुर

विचारों को बंधक बनाना चाहते,

चाहते हैं मेरे हृदय पर आधिपत्य स्थापित कर

अपनी विजय पताका लहराना...

इतना सरल न होगा युद्ध यह

विचारों को गुजरना होगा मंथन से.. आत्ममंथन से!

तब विलग होंगे पयोधि और विष

अमृत तो स्वीकार्य होगा... परंतु विष? विषपान कौन करेगा?

मेरे अंतस में बसे काम,क्रोध,लोभ,मोह के ज़हर को कहो कौन पियेगा?

कहीं गरल मेरे संपूर्ण अस्तित्व को विषाक्त तो नहीं कर देगा?

फिर भयातुर हिय भ्रमित हो चला...

मंथन के पश्चात भी उचित मार्ग नहीं सूझा।

अचानक उन्होंने विषपान कर लिया

मेरे हृदय,मेरे विचारों को विष मुक्त कर दिया!!

स्मृति लोप हुई जो समझ न सकी मैं मूढ़ 

सब कुछ भीतर ही तो है.. अमृत,विष और मेरे शिव!!



Rate this content
Log in

More hindi poem from sanyukta tyagi