मन की व्यथा
मन की व्यथा
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ना जाने ये ज़माना
क्या चाहता है हम लेखकों से
हम कुछ भी लिखें
इन्हें उसमें कोई ना कोई कमी लगती है
जब नाराज़ हो उनकी प्रेमिका
तो हमारी उन्हीं रचनाओं से उन्हें रिझाते है
पर हमारी नई पीढ़ी को समाज से नहीं प्रेम से मतलब है
उन्हें चाहिए तो सिर्फ प्रेम उन्हें सामाजिक परिस्थितियों से कोई मतलब नहीं
हम लेखक हैं किसी के गुलाम नहीं
हमारी रचनाएं स्वतंत्र है यह किसी बंधन में कैद नहीं
हम प्रेम से समाज तक लिखेंगे
हमारी क़लम से हम एक नए युग की रचना करेंगे।।
