में अब किसका नहीं होता
में अब किसका नहीं होता
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जिस शख्स को ढूंढी है नजर वो यहां नहीं मिलता
वो एक फूल हे मोहब्बत का हर जगह नहीं खिलता
मेरा मयान नहीं मिलता में आवारा नहीं फिरता
मुझे सोच के खाना में दुबारा नहीं मिलता
अब कुछ यू खो चुका हु सबसे में इन दिनों
अब में किसको भी यूंही नहीं मिलता
ओर सुनी है अपनी तारीफ हर दफा ग़ज़लों में
पहले हर रोज लिखता था अब यूं ही नहीं लिखता
अब में बहुत दूर आ गया हु सबसे आशिक
उसने छोड़ा है मुझे में अब किसका नहीं होता
कवि - भावेश परमार 'आशिक'
