मैं कल से खूब पढूँगा!!
मैं कल से खूब पढूँगा!!
कभी कभी दिमाग के भीतर कुछ अजीब बवंडर चलने लगता है,
जिसका शायद कोई अर्थ ही नहीं ,
बैलगाड़ी में चलते बैलों कि तरह,
विचार हलचल करते रहते हैं,
स्कूल से पैदल घर आते वक़्त,
रेत की कलाकृतियां बनाते वक़्त,
माँ के हाथ से बना खाना खाते वक़्त,
आसमान में पतंग उड़ाते वक़्त,
मिटटी की सौंधी खुशबु को महसूस करते वक़्त,
गाँव में कोयल की कूक सुनते वक़्त,
चूल्हे में खाना पकने पर होने वाले धुंए के बीच,
कि कल क्रिकेट में मैं अपने उस दोस्त को पेल दूंगा,
पता नहीं ये भारत के खिलाडी श्रीलंका से जीत क्यों नहीं पाए,
मैं होता तो गांगुली की तरह सिक्स लगाता,
कल Polythene की गेंद बनाकर शॉट मारने की प्रैक्टिस करूंगा,
आज शाम मौसम खुशनुमा है,
अगर लाइट आई तो मैं सिम्बा देखूँगा,
वो बेवकूफ है,
उसके एंटीने पे २ दिन से पतंग उलझी है,
न खुद उतारता है न उतारने देता है,
मैं कटने के डर से पतंगे नहीं उड़ाता,
अपनी छोटी खाट पर बैठकर खाना खाना है,
कल से पढ़ने का भी टाइम टेबल बनाना है,
बारह मायी में ऎसे ही नंबर नहीं आते,
वो topper मोड़ा*लड़का* क्रिकेट नहीं खेलता,
फिर भी उसके मुझसे सिर्फ 5 नंबर ज्यादा आये,
उसकी लिखावट लगता है साफ़ है,
शायद उसके पास जदुवाला वाला पैन है,
कोई जादू का पैन मेरे पास हो काश,
जो सारे आंसर खुद लिख दे और मैं
पूरे दिन गेंद-बल्ला खेलूँ,
बापू कहते हैं में बड़ा होकर सरकारी ऑफिसर बनूँगा,
बड़े ऑफिसर करते क्या होंगे,
सुना है बड़ा कड़ा इम्तिहान होता हैं बड़ा ऑफिसर बनने के लिए,
और इंटरव्यू की तो पूछो ही मत,
ये भी पूछ सकते हैं कि तुम्हारे घर में कितनी सीडिया है ,
मैं तो कहूँगा मेरे घर की छत पर छप्पर है,
और अफसर बन के पापा की तरह कोट पहनूंगा,
पापा कभी अपना दर्द नहीं बताते,
परसाल जब ठण्ड में वो बीमार थे,
मेरे सामने वो अपने कंपकंपाते हाथों को रोक से लेते,
मुझसे पढाई के बारे में पूछते,
खूब परेशानी में होने के बावजूद,
मेरे सामने वो घबराये नहीं,
मैं भी बड़ा होके उतना ही संजीदा बनूँगा,
मैं कल से खूब पढूंगा,
क्रिकेट का क्या है,
वो तो गर्मी की छुटियों में भी खेल लूँगा..