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कवयित्री आरती गोस्वामी

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कवयित्री आरती गोस्वामी

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माँ

माँ

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मेरी हँसी के पीछे छिपे दर्द को भी माँ जान जाती है

मैं न भी बताऊँ वो मेरी उलझन पहचान जाती है


जब सारी दुनिया रूठी हो माँ मेरे साथ होती है

बीमार मैं हो जाऊँ माँ सारी रात पकड़ के हाथ रोती है


मेरी शरारतों पर ये मुझसे रूठ भी जाती है

उदास मुझे देखकर खुद ही मान भी जाती है


तुम छांव सी लगती हो ज़िंदगी की घनी धूप में माँ

धरती पर ईश्वर देखे हैं मैंने तेरे स्वरूप में माँ।


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