माँ
माँ
की जितना लिखूँ तेरे बारे में उतना कम है
तेरे इस अमूल्य प्यार को देख मेरी आँखें नम है
आज सब के सामने मैंने ये आगाज़ किया है
मैंने आज तुझ पे कुछ लिखने का प्रयास किया है
बचपन में तू मुझे जो लोरी गा सुलाती थी
मेरी भूख पर आधी रात को भी अपना दुग्ध पिलाती थी
आज भी याद है मुझे कुछ बातें उन दिनों की
जब तू खुद यशोदा बन मुझे कान्हा कह बुलाती थी
तू जो खुद गीले में सो कर मुझे सूखे में सुलाती थी
अपने बचपन की बाते मुझे बड़े चाव से बताती थी
याद बहुत आ रहे है आज वो दिन
जब तू मुझे एक एक रुपए के लिए रुलाती थी
की वो अपनी रोटी दे कहती है
खुद भूखा पेट सहती हैं
अजी इतना आसान नहीं होता माँ होना
जिसके लहू में हर वक्त परिवार की धारा बहती है।
मेरी पहली गुरु, तू मेरी पहली सखा है
मैंने तेरे हर पकवान तो जोर के चाटे को भी चखा है
ओर चिंता ना कर तेरा ये लाडला ना है किसी के चक्कर में
क्यों की मेरा ये दिल तो तेरे पास रखा है ।
मुझे आज भी याद है वो बात मेरे बचपन की
एक खिलौने को ले के अपनी थोड़ी अनबन थी
मैंने उस दिन खाना नहीं खाया था
ओर मैंने तुझे मेरे लिए बेचैन पाया था
माँ तूने 9 महीनों तक मुझे संभाला है
अपनी पूरी जिंदगी भर मुझे पाला है
कैसे उतारूंगा तेरी ममता का कर्ज मैं
तेरे आशीष से ही तो तेरा ये लाडला सबका चाहने वाला है।