क्या फर्क पड़ता है
क्या फर्क पड़ता है
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किसी ने हाल हमारा पूछा तो मुस्कुरा दिए हम
माना मन तो उदास है पर क्या फर्क पड़ता है
कोई टूटा हुआ मिला तो हमने दर्द बांट लिया
हाँ खुद बिखरे पड़े हैं पर क्या फर्क पड़ता है
कोई गिर जाए गर तो उठा दिया करते हैं
हाँ खुद आज भी लड़खड़ाते हैं पर क्या
फर्क पड़ता है
लफ्ज़ खो गए जो तो खामोश रह गए
हाँ दिल अब भी चीखता है पर क्या
फर्क पड़ता है
शरीर माना ठीक है नसों में हलचल जारी है
पर कोई अंदर तो झाँक कर देखे के
ज़ख्म कितने ज़्यादा भारी है
धड़कने चलती तो हैं पर आज़ाद अब नहीं
कैद पिंजरे में हों जैसे पर क्या फर्क पड़ता।।